Wednesday, May 20, 2020

हिसालू- रसीली और स्वादिष्ट हिमालयन बेरी

  हिसालू(yellow himalayan raspberry) एक कटीली झाड़ी है. यह गुलाब कुल (rosaceae family) से संबंध रखता है.हिसालू का वानस्पतिक नाम Rubus ellipticus  हैं.
हिसालू मूलतः भारत ,नेपाल  भूटान ,चीन , इंडोनेशिया और फिलीपींस में ऊंचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है . भारत में हिमालयी क्षेत्रों में  प्राकृतिक रूप से उगता है.
 यह एक प्राकृतिक झाड़ी है लेकिन इसका कायिक प्रवर्धन द्वारा भी विकास किया जा सकता है. इसे  हिसर या फिर गौरी फल भी कहते हैं.
               

 यह  अत्यंत मुलायम एवं खट्टे-मीठे  स्वाद से युक्त रसीली बेरिया होती हैं. यह काले और पीले रंगों का होता है लेकिन पीले रंग का हिसालू आम है.
 सबसे बड़ी समस्या हिसालू के भंडारण को लेकर यह पौधे से तोड़ने के कुछ ही घंटे में खराब हो जाते हैं इसलिए मैदानी क्षेत्रों और महानगरों के लोग इसके स्वाद वंचित रह जाते हैं.
                         
                           

 इसके फल मई -जून के महीने में पक कर तैयार होते हैं .यदि आपको इसका स्वाद चखना है तो आपको पहाड़ों का रुख करना पड़ेगा.
 भारत में हिसालू उत्तराखंड के नैनीताल ,अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और अन्य ऊंचाई वाले हिमालई क्षेत्रों में पाया जाता है. बहुत सी कुमाऊंनी लोक- गीतों में हिसालू का उल्लेख किया गया है.
हिसालू के बहुत सारे स्वास्थ्य संबंधी भी फायदे हैं यह एंटी ऑक्सीडेंट का बहुत अच्छा स्रोत है. एंटी- ऑक्सीडेंट शरीर में बनने वाली सक्रिय ऑक्सीजन प्रजातियों(Reactive oxygen species) को नष्ट करते हैं जो बहुत सी गंभीर बीमारियों के कारक है इसके अलावा पेट दर्द ,खांसी एवं बुखार  में भी यह लाभकारी है. हिसालू का एक्सट्रैक्ट प्रतिजीवी(antibiotic) गुण भी रखता है.

                         
     
 हिसालू एक जंगली वनस्पति है इसलिए इसके महत्व को देखते हुए I.U.C.N. ने इसे वर्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पीशीज के अंतर्गत सूचीबद्ध किया है.
 हिसालू के बारे में कोई अनुभव या उपयोगी  जानकारी हो तो  साझा करें.

 (सभी फोटो पिथौरागढ़ से मेरी छोटी बहन रेनू धामी के सौजन्य से साभार)             
                       


6 comments: