किलमोड़ा(Indian bar berry) पर्वतीय क्षेत्रों में उगने वाला एक झाडीदार पौधा होता है जिसकी ऊंचाई 2 से 3 मीटर होती है. इसकी छाल पीले से भूरे रंग की कांटो युक्त होती है. इसका वानस्पतिक नाम Berberis aristata और कुल Berberidaceae है.
Berbaris वंश में 450 से अधिक प्रजातियां हैं जो दुनिया के उप-शीतोष्ण कटिबंधीय व शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती हैं.
कुछ अपुष्ट मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड के अल्मोड़ा का नाम किल्मोड़ा पौधे के नाम से व्युत्पन्न माना जाता है.
भारत, नेपाल व श्रीलंका के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला किलमोड़ा मूल रूप से हिमालयी उत्पत्ति का माना जाता है|
मार्च-अप्रैल के माह में पेंडो़ में फूल आ जाते हैं और मई मध्य के बाद फल पकना शुरू कर हो जाते हैं जो जून महीने तक चलते हैं. बैगनी रंग के फल रसीले होने के साथ-साथ शर्करा एवं अन्य पोषक तत्वों से परिपूर्ण होते हैं.
किलमोड़ा के पौधे टैनिन(tannins) के भी अच्छे स्रोत होते हैं जोकि कपड़ों की रंगाई के लिए डाई के रूप में प्रयोग की जाती हैं. लकड़ियों से आवश्यक तेल निकाला जाता है जो बहुत सी औषधियों को बनाने में इस्तेमाल होता है.
पेड़ों की छाल से Berberine नाम का alkaloid पाया जाता है जो अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. Barberine के बारे में अधिक जानकारी के लिए आपको इंटरनेट पर बहुत सारे शोध पत्र मिल जाएंगे. इसके अलावा किलमोड़ा में एंटीबायोटिक और anti-inflammatory गुणधर्म भी पाया जाता है. प्रतिदिन 5-10 फल खाने से रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित रहता है .फल और पत्तियां एंटी ऑक्सीडेंट का भी अच्छा स्रोत होते हैं.
बच्चों का पसंदीदा यह फल स्थानीय लोगों की कुछ आमदनी का भी जरिया है. बदलती हुई जलवायु और बढ़ती हुई मानव निर्मित गतिविधियों के कारण दूसरे पेड़-पौधों की तरह इस पर भी खतरे बढ़ रहे हैं जिससे कि इसके संरक्षण की आवश्यकता है . बहुत से गैर -सरकारी एवं सरकारी संगठन इस प्रकार के वनस्पतियों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों को प्रोत्साहित व जागरूक करते रहते हैं.
मेरे अल्मोड़ा प्रवास के दौरान स्थानीय लोगों ने और भी बहुत से औषधीय व स्वादिष्ट फलों एवं जंगली सब्जियों के बारे में बताया. आने वाले लेखों में इनकी चर्चा होती रहेगी.
किलमोड़ा से संबंधित कोई रोचक अनुभव अथवा जानकारी हो तो साझा करें|
फोटो साभार- रेनू धामी, पिथौरागढ़, उत्तराखंड.
Berbaris वंश में 450 से अधिक प्रजातियां हैं जो दुनिया के उप-शीतोष्ण कटिबंधीय व शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती हैं.
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भारत, नेपाल व श्रीलंका के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला किलमोड़ा मूल रूप से हिमालयी उत्पत्ति का माना जाता है|
मार्च-अप्रैल के माह में पेंडो़ में फूल आ जाते हैं और मई मध्य के बाद फल पकना शुरू कर हो जाते हैं जो जून महीने तक चलते हैं. बैगनी रंग के फल रसीले होने के साथ-साथ शर्करा एवं अन्य पोषक तत्वों से परिपूर्ण होते हैं.
किलमोड़ा के पौधे टैनिन(tannins) के भी अच्छे स्रोत होते हैं जोकि कपड़ों की रंगाई के लिए डाई के रूप में प्रयोग की जाती हैं. लकड़ियों से आवश्यक तेल निकाला जाता है जो बहुत सी औषधियों को बनाने में इस्तेमाल होता है.
पेड़ों की छाल से Berberine नाम का alkaloid पाया जाता है जो अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. Barberine के बारे में अधिक जानकारी के लिए आपको इंटरनेट पर बहुत सारे शोध पत्र मिल जाएंगे. इसके अलावा किलमोड़ा में एंटीबायोटिक और anti-inflammatory गुणधर्म भी पाया जाता है. प्रतिदिन 5-10 फल खाने से रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित रहता है .फल और पत्तियां एंटी ऑक्सीडेंट का भी अच्छा स्रोत होते हैं.
बच्चों का पसंदीदा यह फल स्थानीय लोगों की कुछ आमदनी का भी जरिया है. बदलती हुई जलवायु और बढ़ती हुई मानव निर्मित गतिविधियों के कारण दूसरे पेड़-पौधों की तरह इस पर भी खतरे बढ़ रहे हैं जिससे कि इसके संरक्षण की आवश्यकता है . बहुत से गैर -सरकारी एवं सरकारी संगठन इस प्रकार के वनस्पतियों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों को प्रोत्साहित व जागरूक करते रहते हैं.
किलमोड़ा से संबंधित कोई रोचक अनुभव अथवा जानकारी हो तो साझा करें|
फोटो साभार- रेनू धामी, पिथौरागढ़, उत्तराखंड.
सर बहुत अच्छी जानकारी आपके द्वारा दी गई।
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